कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" रचनाः मौलिक(स्वरचित) नई दिल्ली

दोहे
श्रवण पठन लेखन सदा , आलोचन    साहित्य।
गीति रीति कविकामिनी ,लेखन   मम औचित्य।।१।।
सेवन नित साहित्य का , हूँ हिन्दी  फनकार।
अन्वेषक  मधुरिम  कुसुम , भ्रमर    बना गुंजार।।२।।
कवि मानक नियमावली , सहमत नित  सम्मान।
रीति प्रीति रसगुण सहित , काव्य ध्येय श्रीमान।।३।।
निज लेखन   साहित्य  में , करूँ  शब्द   शृङ्गार।
हिन्दी हो सुरभित वतन, सुखद  शान्ति उपहार।।४।।
कलमकार   हिन्दी वतन , गद्य   पद्य अभिधान।
रीति शिल्प    रसगुणमयी , परलेखन   सम्मान।।५।।
आवश्यक   नियमावली , अनुशासित   आचार।
पठन श्रवण लेखन सहज,कवि लेखक आधार।।६।।
सर्वप्रथम   पाठक समझ , बाद बना  कविकार।
आलोचक  गद्दार का ,श्रावक  कवि    फनकार।।७।।
कवि लेखन दर्पण सदा , प्रेरक   नित  समाज।
रचता   हूँ  कवितावली , नयी   क्रान्ति  आगाज।।८।।
सदाचार    कवि भंगिमा , भारत  माँ    जयगान।
मानवता   बस  ध्येय  कवि , नवजीवन रसपान।।९।।
कवि निकुंज  जीवन  सफल, लेखन  पाए मान।
ओत प्रोत   भक्ति वतन , ध्येय  अमन   उत्थान।।१०।।
कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"
रचनाः मौलिक(स्वरचित)
नई दिल्ली


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