नूतन लाल साहू

कविता
जिंनगी म मधुरस घोरथे
पीरित डोरी ल जोरथे
रददा भटके मनखॆ मन ल
सत के मारग रेंगा देथे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
सपना ल हरियर, बना दे थे
मनखे के तकदीर ल,संवार दे थे
अड़हा ल ग्यानी,बना दे थे
परबत म रददा,दिखा दे थे
जिनगी म मधूरस घोरथे
पिरित डोरी जोरथे
रददा भटके मनखॆ,मन ल
सत के मारग,रेंगा दे थे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
अपन अपन गोठ, सबो गोठियाथे
जिनगी ल भला, कोन समझ पा थे
संग छोड़थे, सबो आरी पारी
रहि जा थे, रतिहा अंधियारी
कविता ह दिखाथे, अंजोर
जिनगी म, मधूरस घोर थे
पिरित डोरी जोरथे
रददा भटके, मनखे मन ल
सत के मारग,रेंगा दे थे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
अंधियार ल तै झन,बखान
मोर गोठ ल त मान
रतिहा पहाही, हाेही बिहान
घुरूवा के दिन,घलो बहुरथे
कविता म भरे हे, ये ग्यान
जिनगी म मधूरस घोरथे
पिरित डोरी जोरथे
रददा भटके मनखे,मन ल
सत के मारग,रेंगा दे थे
अइसन कविता कल्याणी हो थे
नूतन लाल साहू


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