प्रीति शर्मा "असीम"  नालागढ़ हिमाचल प्रदेश

कविता 


शीर्षक- किताबें भी एक दिमाग रखती है


किताबें भी ,
एक दिमाग रखती हैं।
जिंदगी के,
अनगिनत हिसाब रखती है।


किताबें भी,
एक दिमाग रखती हैं।


किताबें जिंदगी में,
बहुत ऊंचा ,
मुकाम रखती है ।
यह उन्मुक् ,
आकाश में,
ऊंची उड़ान रखती है।


किताबें भी ,
एक दिमाग रखती हैं ।
जिंदगी के,
 अनगिनत हिसाब रखती हैं।


हमारी सोच के ,
एक -एक शब्द को ,
हकीकत की ,
बुनियाद पर रखती है।


किताबें जिंदगी को ,
कभी कहानी ,
कभी निबंध ,
कभी उपन्यास ,
कभी लेख- सी लिखती है ।


किताबें भी,
एक दिमाग रखती है ।
जिंदगी के ,
अनगिनत हिसाब रखती है।


यह सांस नहीं लेती ।
लेकिन सांसो में ,
एक बसर रखती है।
जिंदगी की ,
रूह में बसर करती है।


स्वरचित रचना
प्रीति शर्मा "असीम"
 नालागढ़ हिमाचल प्रदेश


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