सत्यप्रकाश पाण्डेय

यौवन सुमन अनौखा देखा
रूप सौंदर्य का मकरन्द भरा
अतुलनीय आनन उजास 
जैसे पतझड़ में हो चमन हरा


कली कली में लावण्यता
अवयव मानो सभी पल्लवित
अधरों पै मुस्कान मनोहर
था पूनम सा चेहरा मुखरित


कैसा अनुपम कुसुम सौम्य
जिस सुरभि का न पान किया
था अद्वितीय वो मधुर मधु
जिसका न किसी ने स्वाद लिया


भ्रमर भांति काले कुंतल
मानो मुखारविंद कर रहे पान
अवर्चनीय वह काला तिल
लगे अनुपमेयता की पहचान


चित्रित चारुता ललाट की
बांका चितवन मन को भाये
दिव्यलोक से आई परी सी
क्योंकर सत्य को तू ललचाये।


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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