सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-
     *"सपने हो साकार"*
"सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।
बस सोचती रही जीवन में,
कैसे-सपने हो -
साथी यहाँ साकार।
रात-दिन लगी रही ,
घर के कामो में-
टूटा नहीं विश्वास।
जब भी मिलता समय,
ढूँढे मन जीवन मे-
कैसे-सपने हो साकार?
किताबें ही दें सकती साथी,
मेरे जीवन को-
नव आकार।
पढ़ना नहीं छोडूगी साथी,
जब तक मिलेगी न मज़िल-
हो न सपने साकार।
सबकी सुनती रही जीवन में,
किया नहीं कभी-
जीवन में प्रतिकार।।"
ःःःःःःःःःःःःःःःः
         सुनील कुमार गुप्ता


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