सुनीता असीम आगरा

चोट लगती है मुहब्बत में किसी दिल को जो।
आशिकी के ऐसे अंजाम पे रोना आया।
***
रोज बढ़ती ही रही सिर्फ ये महंगाई है।
चीजों के बढ़ते रहे दाम पे रोना आया।
***
रोशनी सबको नहीं जो दे सके दुनिया में।
उस सितारों से भरे बाम पे रोना आया।
***
आपने कर्म किए थे ऐसे दुनिया में आ।
आपके नाम ए बदनाम पे रोना आया।
***
बस बुराई की सभी की ही जमाने में तुमने।
हर तुम्हारे जो किए काम पे रोना आया।
***
सुनीता असीम
2/3/2020


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