सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 

कुछ ऐसे ही... 


दो हाथों की ज़द्दोज़हद. 
छूट गया संसार वृहद्. 
जंग छिड़ी मधुमखियों की, 
मिल ना  पाया कहीं शहद. 
बदल गए बातों के मायने, 
हाथ ना आया कुछ भी असद. 
दो बोलों की अनबन में, 
कौन किसे करे पसंद. 
साँसे शिलालेखों पर उकरी, 
दूर शहर में खड़ा गुबंद. 
भाई -भाई में बैर हुआ, 
बिगड़ा अपनों से सम्बन्ध. 
बैठा तो कलम घिसी "उड़ता ", 
हो गया लफ़्ज़ों का तुकबंद. 


✍ सुरेंद्र सैनी बवानीवाल 
#9466865227


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