विवेक दुबे"निश्चल"

*महिला दिवस*


तू ही गंगा तू ही यमुना ,
 सीता सावित्री बन आती है ।


 तू आती है चंडी बन ,
 जग विप्पति जब आती है।


 तू ही जननी बन ,
 सृजन आधार सजाती है ।


  सैगन्ध तेरे आँचल की ,
  हर शपथ दिलाती है ।


 *नारी* तू ही 
   *माँ* कहलाती है ।


.... विवेक दुबे"निश्चल"@...
vivekdubeyji.blogspot.com


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