स्नेहलता नीर रुड़की

गीत
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 *मापनी -16/16(मत्त सवैया छंद)* 
अनुबंध न टूटें रिश्तों के ,आओ कुछ पल संवाद करें ।
इस रंग बदलती दुनिया में, कुछ भूल चलें , कुछ याद करें ।।
1
छल-दंभ-स्वार्थ,विद्वेष-भाव, रिश्तों में कटुता घोल रहे।
सिक्कों के बदले सच्चाई,क्यों रोज तराजू तोल रहे।।


सौजन्य और सद्भावों से,अंतर्मन को आबाद करें।
2
कोमल जिह्वा को क्यों कटार,समझें क्यों रार-प्रहार करें।
मिलकर धरती को स्वर्ग-लोक ,हम सकल विश्व- परिवार करें।।


क्यों करें अपावन वचनों को,बोली को अनहद नाद करें।
3
पश्चिमी हवाएँ ललचातीं,पर साथ नहीं हमको बहना।
पुरखों की सीखों में ढलकर,सुखदायी- छाँव तले रहना।।


शुभ संस्कार से अभिमंत्रित,पक्की अपनी बुनियाद करें।
4
मनुहार करें हम प्यार करें,अंतर् को पारावार करें।
दूजे की राहों के कंटक,बनकर क्यों अत्याचार करें।।


अपनी अनुरागी कुटिया को,हम चलो राज-प्रासाद करें।
5
रिश्तों की क्यारी-क्यारी में, अपनेपन का अहसास भरें।
चाहत के फूल पिरोकर हम,जीवन को मोती-माल करें।।


कड़वी जहरीली यादों को,अंतर्घट से आजाद करें।


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