कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज" नई दिल्ली

दिनांकः ३१.०५.२०२०


दिवसः रविवार


विधाः गज़ल


शीर्षकः कमसीन ख्वाव


तुम मेरी ख्वाईशें अरमान मेरे,


तुम नशा जीवन बनी गुल्फा़म मेरे,


कर मुहब्बत मुझी से इतरा रही हो,


बफाई मझधार में तरसा रही हो।  


 


पड़ी थी दिनरात प्रिय के विरह में,


बन चकोरी सावनी अश्रु भर नयन में,


बिन पानी मीन सम तड़पती रही हो,


प्यार की रुख्सार समझती नहीं हो।


 


 माना तुम कमसीन ख्वाव हो मेरे,


 कुदरती नूर दिली दिलदार हो मेरे,


 पिलाई नशीली जाम जानती हो,


 इश्क के शागिर्द हम तुम मानती हो। 


 


 


कवि✍️डॉ. राम कुमार झा "निकुंज"


रचनाः मौलिक (स्वरचित)


नई दिल्ली


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