*रात हो या सवेरा*
विधा: कविता
दर्द की रात हो या,
सुख का सवेरा हो...।
सब गंवारा है मुझे,
साथ बस तेरा हो...।
प्यार कोई चीज नहीं,
जो खरीदा जा सके।
ये तो दिलो का,
दिलो से मिलन है।।
प्यार कोई मुकद्दर नहीं,
जिसे तक़दीर पे छोड़ा जाए।
प्यार यकीन है भरोसा है,
जो हर किसी पर नहीं होता।
मोहब्बत इतनी आसान नहीं,
जो किसी से भी की जाएं।
ये तो वो है जिस पर,
दिल आ जाएं।।
चूमने को तेरा हाथ,
जो में तेरी ओर बढ़ा।
दिलमें एक हलचल सी,
मानो मचलने लगी।
क्या पता था आज,
की क्या होने वाला हैं।
ये तो अच्छा हुआ,
कि कोई आ गया।।
वरना दो किनारों का,
आज संगम हो जाता।
और मोहब्बत करने का,
अन्जाम सभी को दिखता।
दर्द का इलाज यारो,
दर्द ही होता है।
जो दर्द को सह जाते है,
वो ही मोहब्बत कर पाते है।।
पता नहीं लोग मोहब्बत को,
क्या नाम देते हैं…।
हम तो तेरे नाम को ही,
मोहब्बत कहते हैं…।
हर उलझन के अंदर ही,
उलझन का हल मिलता है।
कोशिश करने से ही,
सुंदर कल मिलता है।।
जय जिनेन्द्र देव की
संजय जैन (मुम्बई)
31/05/2020
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