भरत नायक "बाबूजी" लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)

*"क्यों चले जाते हैं मीत?"*


(कुण्डलिया छंद)


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*सपनों का नित भान कर, भरे नहीं घट-रीत।


क्यों जाते हैं छोड़कर, दूर कहीं मन-मीत??


दूर कहीं मन-मीत, नेह आपस का तोड़े।


जाने किससे कौन, कहाँ कब नाता जोड़े??


कह नायक करजोरि, सुहाना क्षण अपनों का।


करता हृदय विदीर्ण, चक्र चंचल सपनों का।।


 


*होते अपने क्यों विलग? अपनों की तज प्रीति।


मेल कभी कब छूटना, अजब जगत की रीति।।


अजब जगत की रीति, कर्म जो करता जैसा।


जग में मिलन-विछोह, मिले फल उसको वैसा।।


कह नायक करजोरि, कभी हँसते कब रोते।


पल-पल खेल-अनेक, मिलन-बिछुड़न के होते।।


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भरत नायक "बाबूजी"


लोहरसिंह, रायगढ़(छ.ग.)


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