डॉ0 सुषमा कानपुर पिता कविता

पिता दिवस पर मेरी रचना


 


रहते थे खुशहाल पिता,


खाते रोटी दाल पिता।


नमक अगर ज्यादा हो जाये ,


लेते पानी डाल पिता।


सब को दूध पिलाते थे,


आंगन में बैठार पिता।


बजरंगी के भक्त बड़े,


गाते रघुवर गान पिता।


अम्मा जी तैयारी करती,


करते पूजा पाठ पिता।


भूत प्रेत जिसको भी आते,


देते उनको झार पिता।


बिच्छू जहर जिसे चढ़ जाता,


देते तुरत उतार पिता।


भर भर जेब पेहेटुआ लाते।


लाते कैथा आम पिता।


ढूढ ढूढ करके बनवाते।


बन करइल का साग पिता।


गाय भैस उनको थी प्यारी,


सेवा करते खूब पिता।


बाबा जी की दवा मिठाई,


लाते थे चुपचाप पिता।


ट्रेक्टर में बैठा करके,


ले जाते बाजार पिता।


गंगा जी बाल्हेस्वर बाबा,


ले जाते हर बार पिता।


कई बार विपदाएं आईं,


पर माने ना हार पिता।


हम बच्चों के करते थे,


हर सपना साकार पिता।


हम सबकी खुशहालीको,


किया बड़ा ही त्याग पिता।


अब तो केवल यादें बाकी,


उनसे मिले न पार पिता।


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©®



16-6-19


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