डॉक्टर सुशीला सिंह

पर्यावरण 


यह प्रचंड धूप ,


चिपचिपाती गर्मी


अब सहन नहीं होती. 


 यह बे -मौसम बरसात, 


कभी अकाल की मार


 कड़ -कड़- कड़ गिरते ओले


 किसान की छाती में बम फोड़ते


 अब सहन नहीं होते ।।


 चिमनियों से निकलता धुआँ 


पॉलीथिन से पटी नालियाँ


 धरा को कर रही बंजर


 विषाक्त वातावरण  


अब सहन नहीं होता ।।


ए॰सी, फ्रिजों से उत्सर्जित जहरीली गैस 


 न्यूक्लियर बम


 कर रहे ओजोन परत का क्षरण


 मिलो ,कारखानों का विषाक्त कचरा   


बढ़ता वायु प्रदूषण


 अब सहन नहीं होता ।।


 शहरों के सीवर पाइप 


कर रहे भागीरथी को मैला


 विलासिता के लिए कटते वन


पिघलते ग्लेशियर   


गहराता जल संकट 


अब सहन नहीं होता ।।


अम्फान, निसर्ग जैसे भयंकर तूफान 


जीवन को करते अस्त-व्यस्त


 कोरोना जैसी महामारी 


से दुनिया त्रस्त 


किसी शत्रु की पलटन -सी चाह रही सृष्टि को निगलना 


मानव फिर भी निश्चिंत 


पाल रहा इच्छाएं अनंत  


क्षुब्ध प्रकृति का रौद्ररूप


अब सहन नहीं होता ¤¤¤¤¤


🙏🌲


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