निशा"अतुल्य"

रूप तुम्हारा


6.6.2020


 


नैनो में है रूप तुम्हारा


मुझको कुछ न भाता है 


कान्हा अब तो दर्शन दे दो


मन मेरा अकुलाता है ।


 


मोहनी मूरत सांवली सूरत


पीतांबरी अति प्यारी है 


अधरों पर जो मुरली साजे


छवि लगती अति न्यारी है ।


 


मोर मुकुट सिर सोहे तेरे


गले वैजंती माला है


सँग तेरे जब गैया चलती


दृश्य अज्जब निराला है ।


 


राधा जी सँग रास रचाओ


गोपी सँग सारे ग्वाला है


देख रही हैं तुम को ही वो


हर ग्वाला लगता कान्हा है ।


 


रूप अलौकिक हृदय बसे है


सांवरी सूरत वाला है 


कान्हा मुझको दर्श दिखा दो 


मन तुम को चाहने वाला है ।


 


मुझको अब तुम भव से तारो


जीवन कष्टों वाला है 


एक तेरे ही नाम में सुख है


अब इसको हमने जाना हैं ।


 


रूप तुम्हारा नैन बसे है


नाम अमृत का प्याला है


पकड़ लिया है नाम तुम्हारा


उस पार मुझको जाना है ।


 


स्वरचित 


निशा"अतुल्य"


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