प्रिया चारण  उदयपुर राजस्थान

शीर्षक- समय 


 


समय का क्या भागदौड़ का था गुजर गया


सन्नाटे का है गुजर रहा है ।


 


विनाश का क्या ?


कौरवो का आया था वजह खुद ब खुद बन गई


मनुष्य का आया है वजह स्वयं बना रहा है।


 


समय के पलट वार का क्या ?


कल तक मनुष्य जीव को मारता था


आज विषाणु मनुष्य को मार रहा है ।


 


गमंड का क्या ?


कल मनुष्य प्रकृति का नाश कर रहा था


आज प्रकृति करारा जवाब दे रही है ।


 


स्वेच्छा का क्या?


कल मनुष्य अपने लोभ से दुनिया चला रहा था


आज प्रकृति स्वयं स्वच्छता का श्रृंगार कर रही है ।


 


ज़ुबाँ बेजुबाँ का क्या?


कल बेजुबाँ हथिनी को मजाग से मारा 


कल बेजुबाँ टिड्डी फसलो का मजाग बना देगी ।


 


समय का क्या?


कल तेरा था तो कल मेरा होगा 


कल अँधेरा था तो फिर सवेरा होगा


हिसाब तो होना ही है कल मेरा हुआ


तो आज तेरा होगा ।


 


समय की मार बड़ी ज़ोरदार 


संभल जा मनुष्य ,,,,


वरना विनाश होता रहेगा बरकरार ।


 


प्रिया चारण 


उदयपुर राजस्थान


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...