शशि मित्तल "अमर"*

*मेरे पिता*


 


मैं उस बगिया का अंश हूँ


उस माली का वंश हूँ


जिन पर गौरवन्वित हूँ


वो हैं मेरे पिता।


 


व्यक्तित्व उनका देखा हमने


आसमान से ऊँचा


सभी को देते आदर भाव


न दिखाएं किसी को नीचा


सारे सुख घर में भर दिए


रहा न कुछ भी रीता


वो हैं मेरे..............


 


हमें सिखाया संस्कार,


और शान से रह कर जीना


रच गए हर कोने में


जैसे रचती है हीना


रामायण का पाठ सुनाते


और सुनाएं गीता


वो हैं मेरे............


 


ऊपर से कठोर लगते


अंदर से पूरे मोम


चले गये हमें छोड़ कर


रोता है रोम रोम


याद करूँ उस गोद को


जिसमें बचपन बीता


करूणा दया सिखाने वाले


वो ही थे मेरे पिता.....


 


*शशि मित्तल "अमर"*


*मौलिक एवं स्वरचित*


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