सुनीता असीम

इश्क की मदिरा पिलाते जाइए।


हुस्न को आशिक बनाते जाइए।


***


जिन्दगी जब है हमारी चार दिन।


क्यूं भला इसको गंवाते जाइए।


***


जिन्दगी की है डगर मुश्किल बढ़ी।


मुश्किलों को बस हराते जाइए।


***


इक हसीना शोख सी है ज़िन्दगी।


लाड़ इसके सब लड़ाते जाइए।


***


चीज कैसी बेमुरव्वत इश्क ये।


रूठते औ बस मनाते जाइए।


***


सुनीता असीम


८/६/२०२०


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