डॉ शिवानी मिश्रा (प्रयागराज)

आप और मैं (कविता)


 


 


क्या आप है?


क्या मैं हूँ?


आप में ही ,मैं हूँ,


मैं ,मे ही आप है।


 


फ़लक पर पहुँचे तो आप हैं


ख़ाक पर ही रहा तो मैं ही रहा।


 


कभी आप बड़े रहे,तो कभी मैं बड़ा रहा,


आप से मैं निकला, मैं से आप निकले।


 


मैं रहा तो दुनिया ने न समझा,


आप बना तो दुनिया को ना समझा।


 


जब मैं रहा तो अपने जज्बातों को कुचलता गया,


जब आप बना तो लोगों के जज्बातों को कुचल दिया।


 


फर्क इतना ही रहा,


की मैं, मैं न रहा,


औऱ आप , आप न रहे,


इस आप और मैं के चक्कर में,


हम सिर्फ कठपुतली बन कर रह गये।


 


 


शिवानी मिश्रा


(प्रयागराज)


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