काव्य रंगोली आज के सम्मानित रचनाकारस्नेहलता 'नीर' रुड़की,हरिद्वार

श्रीमती ,उत्तराखंड


शिक्षा-स्नाकोत्तर,बी.एड.


व्यवसाय--अध्यापन कार्य


रूचि-गीत,ग़ज़ल,दोहा,मुक्तक,कुण्डलिया,सवैया अनेक विधाओं में लेखन कार्य।


 


साझा संकलन


***********


1--तुहिल कण


2--कवयित्री सम्मेलन


3-दोहा दर्शन


4--आधी आबादी के दोहे


5--101 महिला गज़लकार


6--वूमन आवाज


7--साहित्य की धरोहर


 


दोहा समूह द्वारा दोहा शिरोमणि सम्मान


मुक्तक शिरोमणि सम्मान


 


साझा संकलन


***********


1--तुहिल कण


2--कवयित्री सम्मेलन


3-दोहा दर्शन


4--आधी आबादी के दोहे


5--101 महिला गज़लकार


6--वूमन आवाज


7--साहित्य की धरोहर


काव्य रंगोली तथा कई पत्र पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित।


 


दोहा समूह द्वारा दोहा शिरोमणि सम्मान,


मुक्तक शिरोमणि सम्मान,


मातृभाषा संस्थान द्वारा हिंदी योद्धा का पद आदि


 


 


 गीत


*****


मापनी-11--13 पर यति।


 


अक्षर-अक्षर गूँथ,भाव का रस डाला है।


शब्द साधना गहन,गीत मुक्ता -माला है।


तुलसी सूर कबीर, गदाधर , मीरा बाई


कवि रहीम रसखान,भक्ति की सरित बहाई।


आदि काल से गीत, फला- फूला है जग में।


बसा सृष्टि के कण-कण,जीवन की रग-रग में।


 


वेद ऋचाएँ रचीं,जतन करके पाला है।


शब्द साधना गहन,गीत मुक्ता -माला है।


 


दोहा, छंद,कवित्त,गजल हो या चौपाई।


गीतों की रसधार,सभी में मधुर समाई।


जीवन का संगीत,हृदय पुलकित जब गाता।


ईश्वर में हो लीन,स्वर्ग सम सुख तब पाता।


 


मन वीणा के तार-तार झंकृत,हाला है।


शब्द साधना गहन,गीत मुक्ता -माला है।


 


ऋतुओं का है सखा,पंछियों का मधु कलरव।


श्लोक,मंत्र उच्चार,प्रणव का गुंजन वैभव।


वीरों में भर जोश,उन्हें फौलाद बनाता।


लय है स्वर है ताल,सुने जो भी लहराता।


 


प्रेमी का है प्रेम,भक्ति की मधुशाला है।


शब्द साधना गहन,गीत मुक्ता -माला है।


 


शब्द-शब्द हैं सुभग,व्यंजना से अनुप्राणित।


रसभीनी माधुर्य,रागिनी से अनुरंजित।


लिए खुशी की महक,पीर,अंतस् का क्रंदन।


गीत,प्रीति की रीति,प्रकृति का सुरभित चंदन।


 


कभी नेह का "नीर",कभी अंतर्ज्वाला है।


शब्द साधना गहन,गीत मुक्ता -माला है।


 


 


 


 कुण्डलिया


**********


 


रोटी के लाले पड़े,भटक रहे मजदूर।


काम, दिहाड़ी के बिना,आये घर से दूर।।


आये घर से दूर, कमाने को कुछ पैसे।


दिखा रहे दिन आज,निवाले मिलते कैसे।


कोई करता मौज,किसी की किस्मत खोटी।


विनती है भगवान,सभी को देना रोटी।।


 


मजदूरी में जुट गये, गयी पढ़ाई छूट।


भूख गरीबी ने लिया,सारा बचपन लूट।।


सारा बचपन लूट, न कोई छत है सिर पर।


करें रात दिन काम,जियें ये हर पल डर कर।


पालें पापी पेट,खड़ी पग-पग मजबूरी।


होते जो धनवान,नहीं करते मजदूरी।।


 


रोटी सूखी खा रहा,बेबस है मजदूर।


महँगाई की मार से,दीन-हीन मजबूर।।


दीन- हीन मजबूर,व्यथा अब किसे सुनाए।


बेटी हुई जवान,ब्याह की फिक्र सताए।


'नीर' बना कृशकाय,बदन पर फटी लँगोटी।


धन होता जो पास,चुपड़ कर खाता रोटी।।


 


करता है संसार भी,भारत का यशगान।


सोने की चिड़िया कहे, माने अति धनवान।


 माने अति धनवान,धरा सोना उपजाये।


चलती मंद बयार,सभी का मन महकाये।


चढ़े प्रगति सोपान,नहीं दुश्मन से डरता।


भरे न अंतस द्वेष,प्रेम सबसे है करता।


 


प्यारी माटी देश की,पावन मलय समान।


प्राणों से प्यारा वतन,अपना हिंदुस्तान।।


अपना हिंदुस्तान,न करना नफ़रत जाने।


चला प्रीति की रीत, जगत को आज सिखाने।


हिन्दू, मुस्लिम, सिक्ख, ईसाई, सबमें यारी।


मिसरी जैसे बोल,हिन्द की हिंदी प्यारी।।


 


सच्चाई पर झूठ नित, करे वार पर वार।


फिर भी सच की जीत हो,और झूठ की हार।।


और झूठ की हार,झूठ का हो मुँह काला।


सच की जय जयकार,गले में पड़ती माला।


झूठ बहाए "नीर", करो जग में अच्छाई।


झूठ घटाता मान, और यश दे सच्चाई।।


 


बाती तेल विहीन है,अब विकास का दीप।


सूरज भी अँधियार को ,कहने लगा महीप।


कहने लगा महीप, रौशनी बंधक है अब।


पूछ रहे हैं लोग, मिलेंगें अच्छे दिन कब।


दूर दूर तक भोर,किसी को नजर न आती।


निकलेगा कब सूर्य, जलेगी कब अब बाती।।


 


राहें काँटों से भरी, जन-जन है बदहाल।


सबकी रक्षा के लिए, फिर आओ गोपाल।।


फिर आओ गोपाल,पाप व्यभिचार बढ़ रहा।


चीर हरण के पाठ, दुसासन रोज़ पढ़ रहा।।


नैनन बहता 'नीर' , द्रौपदी भरती आहें।


कृपा करो घनश्याम,दिखाओ सबको राहें।।


 


निष्कंटक राहें बने, चुभें न पग में शूल।


कृपा करो हे!साँवरे, जीवन हो अनुकूल।।


जीवन हो अनुकूल,भाग्य सबके ही जागें।


मिटें सभी मतभेद, मधुर रिश्ते रस-पागें।


बहे न नैना "नीर", सुनाई पड़ें न आहें।


स्वर्ग बने संसार, बने निष्कंटक राहें।।


 


बंजर धरती कर रहा,हर दुख से अनजान।


बढ़ती दैवी आपदा, जाग अरे नादान।।


जाग अरे नादान, धरा को हरी बना ले।


जल की कीमत जान ,बचा कर पुण्य कमा ले।


कट जायेंगे पेड़, दुखों का होगा मंजर।


पेड़ लगाओ खूब, रहे न धरती बंजर।।


 


 


मुक्तक


******


चलना सम्भल कर ,कठिन ये डगर है।


अडिग हौसले हैं,नहीं कोई डर है।


सदा श्यामसुंदर , सहारा बने हैं,


मिलेगी हमे जीत ,उनकी मेहर है।


(2)


गिरगिट से ज्यादा रंग तो इंसान बदलता ।


हर रोज़ वह जहान में भगवान बदलता ।।


बल से , मौहब्बत से , कभी नफ़रत से , घात से ,


छलने के रोज़ ही यहाँ सामान बदलता ।।


(3)


उम्र की मोहताज होती हैं कहाँ खुशियाँ कभी ।


प्रेम के रस में डुबोकर , कीजिए बतियाँ कभी।


ज़िन्दगी जिंदादिली है, यौं न मर-मर के जियो,


चाह का दीपक जला ,रौशन करो रतियाँ कभी !!


(4)


[क्या भरोसा श्वास का,रुक जाय कब आवागमन।


प्यार के दो बोल से ,तुम जीत लो हर एक मन।


कुछ नहीं मिलता जहाँ में, बीज नफ़रत के उगा,


आइए मिलकर रहें , हर ओर हो चैनो -अमन।


(5)


अँधेरे पर किसी जलते दिये का वार है कविता।


किसी असहाय के हक़ में उठा हथियार है कविता।


महकते फूल कलियों का महज गुणगान मत समझो,


हथेली पर गरीबों की रखा अंगार है कविता।


 


 


गीतिका 


२१२२/२१२२/२१२२/२१२


गुम हुआ बचपन बुढापे ने जवानी छीन ली


दौरे हाज़िर ने सुहानी जिंदगानी छीन ली


1


वक़्त की रफ़्तार ज्यादा काम ज्यादा उम्र कम 


वक़्त की इस दौड़ ने हर सावधानी छीन ली


2


दे गया दिलवर कसम मत याद अब करना मुझे


उस कसम ने इश्क की सारी कहानी छीन ली


3


आज सारा ही जहां सहमा घरों में क़ैद है


वायरस ने ही लबों की शादमानी छीन ली


4


है तरक़्क़ी की थमी रफ़्तार अब तो कू-ब-कू


साँसों की देखो कुरोना ने रवानी छीन ली


5


खेत ओ खलिहान से रखता न कोई वास्ता


आज शहरों ने जहां की बागवानी छीन ली


6


'नीर'मुफ़लिस बोलता मिलती उसे दुत्कार है


मुफ़लिसी ने देख लो अब हकबयानी छीन ली


 


 


 दोहे


*****


1


 कुमुदबन्धु को देख कर,खिले कुमुद- तालाब।


धवल दूधिया चाँदनी,नयन- सजन के ख्वाब।।


2


आज शर्म से जा छुपे,सभी बिलों में व्याल ।


अतिशय विषधर हो गया,मनुज ओढ़ कर खाल।।


3


अर्णव बनने के लिए ,बहती सरि दिन -रात।


अकर्मण्य नर आलसी,कब होते विख्यात।।


4


 कंचन की है मुद्रिका,माणिक जड़ी अमोल।


निरख रूपसी रूप निज,बैठी करे किलोल।।


5


बने कामिनी भामिनी,बने काल का गाल।


कामी, कपटी कापुरुष ,डाले जब छल- जाल।।


6


ज्ञान-विभा -विग्रह का,करो पुण्य नित काज।


तमस मिटे अज्ञान का,शिक्षित बने समाज।।


7


सकल सृष्टि है आपसे,आप सृष्टि के अक्ष।


हरि विपदा हर लीजिए,विनती करें समक्ष।।


8


दिनकर ने दर्शन दिए ,बीत गयी है रात।


कंचनमय धरती हुई,सुखमय हुआ विभात।


9


एक अम्बुजा रागिनी,कर्णप्रिया है खास।


एक सरोवर में खिले,एक विष्णु के पास।


10


करके कर्म महान नर,बन जाता महनीय।


देव तुल्य दर्ज़ा मिले,सदा रहे नमनीय।।


 


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

दयानन्द त्रिपाठी निराला

पहले मन के रावण को मारो....... भले  राम  ने  विजय   है  पायी,  तथाकथित रावण से पहले मन के रावण को मारो।। घूम  रहे  हैं  पात्र  सभी   अब, लगे...