सुनीता असीम

थे जागे रात भर सोने न पाए।


किसी की याद थी रोने न पाए।


***


जलाया दीप हमने तो वफ़ा का।


रखा बस ध्यान ये बुझने न पाए।


 ***


कई रातें दिनों तक जागते थे।


अंधेरों को मगर धोने न पाए।


 ***


उन्हीं के साथ चलते हर कदम थे।


कदम इक उनके बिन चलने न पाए। 


*** 


बताना चाहते थे बात दिल की।


हुआ जब सामना कहने न पाए।


***


कसक दिल में उठी रोना भी चाहा।


जहाँ का सोचकर रोने न पाए।


***


सुनीता असीम


१८/७/२०२०


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...