सुषमा दीक्षित शुक्ला

तू बिखर गई जीवन धारा,


 हम फिर भी तुझे समेट चले।


 हम फिर से तुझे समेट चले ।


तू रोई थी घबराई थी ,


उठ उठ कर फिर गिर जाती थी,


 तू डाल डाल हम पात चले ।


हम फिर से तुझे समेट चले ।


हम फिर भी तुझे समेट चले।


 विपरीत दिशा का भंवर जाल,


 नैनों से अविरल अश्रु माल ,


प्रति क्षण तड़पे दिन रात जले ।


हम फिर भी तुझे समेट चले।


 हम फिर से तुझे समेट चले।


 प्रियतम का उर में मधुर वास,


 महसूस किया हर श्वांस श्वांस ,


 फिर वीर पिता से प्रेरित हो ,


अब वीर सुता बनकर निकले ।


हम फिर से तुझे समेट चले।


 हम फिर भी तुझे समेट चले ।


तू बिखर गई जीवन धारा ,


हम फिर से तुझे समेट चले ।


 



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