आचार्य गोपाल जी 

समझ ना पाता


 


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


 मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 जीत लिखूं या हार लिखूं 


 मैं संशय में रह जाता हूँ


कंस का वध किया तुमने 


पर जरासंध से भाग गए


रणछोड़ कहूं या रण बांका


इस उलझन में पड़ जाता हूँ


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


 मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


मैं गीता का ज्ञान लिखूँ


या पांडव का अभिमान लिखूँ


गांधारी का मैं त्याग लिखूँ


या द्रौपदी का भाग्य लिखूँ


मैं रुकमणी का राग लिखूँ


या राधा से तेरा विराग लिखूँ


तेरी प्रीत समझ न पाता हूँ


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


नंद-यशोदा का ग्वाल कहूँ


या वसुदेव-देवकी का लाल कहूँ


मधुसूदन मदन गोपाल कहूँ


या नटवर नागर ब्रजलाल कहूँ


तुम्हें माखन चोर मतवाल कहूँ


 या केशव विराट विकराल कहूँ


मैं तेरा मर्म समझ न पाता हूं


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


माखन चोर कन्हैया तू


मुरली मधुर बजैया तू


मधुबन में रास रचैया तू


बलदाऊ का छोटा भैया तू


द्रौपदी की लाज बचैया तू


सुदामा से नेह लगैया तू


तेरी करनी समझ न पाता हूँ


हे कृष्ण लिखूं मैं क्या तुम पर


 मैं कुछ भी समझ ना पाता हूँ


 


आचार्य गोपाल जी 


               उर्फ 


आजाद अकेला बरबीघा वाले


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