अनुराग दीक्षित

अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


माता करती आर्तव पुकार


अरि शांति भंग करता अपार


सीमा उल्लंघन बार बार


अब शीश काटने हैं अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


है महाशक्ति का अरुण रंग


फड़के सैनिक का अंग अंग


रिपु का करने को अंग भंग


फिर रोक सकेगा कौन कंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


दुंदभी बजे फिर इधर तान


डमरू शिव तांडव का विधान


रणभेरी का हो अखिल गान


सीमा भारत की हो अनंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


हो वायु शक्ति या जल कमान


सब मिलकर रक्खें देश मान


गौरव का अपने रहे भान


हल सभी प्रश्न होवें ज्वलंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


अरि का मस्तक फिर डोल उठे


हल्दी घाटी फिर बोल उठे


रिपु का फिर शोणित पीने को,


पाताल भैरवी डोल उठे


एक बार दिखा दो दुनिया को,


भारत की ताकत दिग- दिगंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


रणभेरी से ही हल होंगे


इतिहास पूछता मूक प्रश्न


सिर हेमराज का बोल उठे


क़तरा क़तरा फिर खौल उठे


करना ही होगा आज तुम्हें,


इस छद्म युद्ध का सकल अंत


अब हो वीरो ऐसा बसंत !


 


अनुराग दीक्षित


फर्रुखाबाद


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