मेरे सपनों का भारत
बैठी थी एकाकी स्वगेह में
रही थी निहार शून्य खे में
सहसा एक कंपित स्वर ने चौंका दिया
क्षण भर में स्वप्नलोक से धरा पर पहुँचा दिया
पूछ रहा था कोई मुझसे
क्या यही है मेरे सपनों का भारत
भारत मेरा भारत वह भारत
जिसके लिए वीरों ने प्राण गंवाए
और स्वतंत्रता के आशा दीप जलाए
क्या था स्थान भ्रष्टाचार का उसमें
नेताजी ने जो सपना पलकों में संजोया था
क्या भुखमरी बेरोजगारी से पीड़ित
जनता के शोषण का संकल्प कराया था
राजनीति की बिसात पे झंडा
सांप्रदायिकता का फहराया था
छोड़कर अपनी संस्कृति पश्चिमी सभ्यता अपनाने को
आज की नवयुवा पीढ़ी को पथभ्रष्ट किया था
क्या ऐसे ही भारत का स्वप्न अपनी पलकों पर उन्होने संजोया था
न दे सकी मै उसके एक भी प्रश्न का उत्तर
खड़ी रही बस यूँ ही मूक बनी हो निरुत्तर
धीरे धीरे वह आवाज लुप्त हो गई
किसी देश की समृद्धि का आधार
होती है उस देश की युवा पीढ़ी
कर सकती है वही भारत का पुनरुद्धार
खोजकर सफ़लता की पहली सीढ़ी
कर सकते हैं कामना प्रयास से पूर्ण सफ़लता की
जैसी कल्पना की थी पूर्वजों ने हमारे भारत की
पाप घृणा स्वार्थ से दूर सौहार्द से परिपूर्ण
क्या ऐसा ही वातावरण दे सकेंगे हम अपने भारत को
दीप्ति मिश्रा
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