डॉ बीके शर्मा 

क्यों आवागमन में फंसते हैं 


क्यों एक दूजे पर हंसते हैं 


देह धारण हम करते विचरण 


क्यों आकर गर्त में धंसते हैं 


 


घट भरते पाप पुण्य से हम


फिर बूंद बूंद क्यों रिसते हैं 


है दो पाटों की जीवनधारा 


फिर बीच में क्यों हम पिसते हैं 


 


बार-बार क्यों आते धरा पर


क्यों देह से देह में बसते हैं 


एक त्यागा दूजा पाया 


यह देह भी कितने सस्ते हैं 


 


करते धारण प्राणी इनको 


क्यों रगड़ रगड़ कर घिसते हैं 


वह कर्म हीन हो जाते हैं फिर


खुद की कसौटी कसते हैं 


 


ना कोई अपना ना पराया 


यह झूठे सारे रिश्ते हैं 


सच्चा साथ है प्रियतम तेरा 


कण कण में तुम ही बसते हैं 


 


थाम हाथ संग ले चल साकी 


सामना तेरा मेरा अभी है बाकी 


 


डॉ बीके शर्मा 


उच्चैन भरतपुर राजस्थान 


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