प्रखर

सखी री! रुचि रुचि मेंहदी धरी।


भर सावन मँह रग-रग लहके, जब जब मेह झरी।


बाग तड़ाग पोखरा अंगना , भई धरती हरी भरी।।


अंबर कारे बदरा बिजुरी, गैलन कींच करी।


जानै कब साजन घर अइहैं, मैं मुरझी गेह परी।।


इतै झुराने रास रंग बालम, उत काम्य उतान भरी।


झूला सलोनो चंदन पटुला, जामै रेशम डोर परी।।


बरै श्रावणी जिया जरावै, भारी विरह घरी।


प्रखर कंत बिनु प्रिया उदासी, कब भेटिहैं कंत हरी ।।


 


*सावन का लालित्य*


 


भवानी रूप को वंदन मुखर लालित्य सावन का।


नखशिख सौम्यता लाली आसरा पीय आवन का।।


घिरे घनश्याम री आली! कजरी तीज मल्हारें,


भिगाए मेघ तन मन को प्रखर उर नेह सावन का।।


 


प्रखर दीक्षित


फर्रुखाबाद


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