सुनील कुमार गुप्ता

गहराती बदली यादों की,


कैसे-उभरे उससे मन?


यादों के साये में पल-पल,


व्याकुल रहा अपना मन।।


स्वार्थ में डूबा जो तन-मन,


यहाँ पाया न अपनापन।


चाहत संग-संग जग में फिर,


खोये रहे सपनो संग।।


पूरे होते जीवन सपने,


कुछ तो ऐसा करता तन।


सत्य-पथ अपनाते जो साथी,


फिर व्याकुल होता न मन।


 सुनील कुमार गुप्ता


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