सुनील कुमार गुप्ता

कटु वचनों से जीवन में,


आहत हुआ मन-


मिटती नहीं उसकी चुभन।


भूलने की उसको जीवन में,


साथी तुम यहाँ-


कितना भी करो जतन।


अपने हो कर भी साथी,


अपने नहीं-


अपनत्व का चाहे करो प्रयत्न।


मिट जाती है ख़ुशियाँ सारी,


अमृत भी बनती विष प्याली-


साथी जो मिटी न मन की चुभन।


करे जो साधना-अराधना,


होगी प्रभु कृपा -


मिटेगी मन बसी चुभन।


कटु वचनो से जीवन में,


आहत हुआ मन-


मिटती नहीं उसकी चुभन।।


 सुनील कुमार गुप्ता


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