सुनीता असीम

नाम होंठों पर तेरा ही रह गया।


ख्वाब का था इक महल जो ढह गया।


****


देखकर भी जुल्म तेरे हमनशीं।


मन मेरा था बावरा जो सह गया।


****


कुछ नहीं रक्खा दिलों के मेल में।


हिज्र का मुझसे हरिक पल कह गया।


****


जो बचा मुझमें रहा था तू कहीं।


आंसुओं के साथ वो भी बह गया।


****


इंतिहा थी दर्द की जितनी रही।


दिल कराहों से उसे भी कह गया।


****


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...