सुनीता असीम

जो आसरा दे कहां वो शज़र मिलेगा मुझे।


कि डूबकर ही लगे अब गुहर मिलेगा मुझे।


***


अभी तलक हैं किए कर्म जो भले ही थे।


कि किस जन्म में उनका समर मिलेगा मुझे।


***


जो रूह को मेरी दे चैन औ सुकूँ भी दे।


वो चाँदनी को लुटाता क़मर मिलेगा मुझे।


***


तलाश करती ठिकाना खुदा के चरणों में।


वहीं चलूंगी जहां वो बसर मिलेगा मुझे।


***


समझ लिया था जिसे ख़ैरख्वाह मैंने तो।


पता नहीं था उसीसे ही डर मिलेगा मुझे।


***


सुनीता असीम


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...