सुनीता असीम

मुझे तेरी नज़र ने आज .....दीवाना बना डाला।


तेरी बातों ने मेरे दिल को अफ्साना बना डाला।


***


बड़ी संकरी गली हैं धर्म की इन रास्तों में भी।


हरिक घर में जहां ने एक बुतखाना बना डाला।


***


ग़मों से जो करो यारी रहो मदहोश फिर बनकर।


समंदर ने ग़मों के एक मयखाना बना डाला।


***


न आए काम सबके जो अकेला ही रहेगा वो।


खुदी को आज उसने सिर्फ बेगाना बना डाला।


***


करेगा दूर गुलशन से सभी के खार चुनकर जो।


उसे दुख दूर करने का ही पैमाना बना डाला।


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सुनीता असीम


७/८/२०२०


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