विनय साग़र जायसवाल

गीतिका 


 


उसकी बाँहों में नींद आती है


यह ही आदत उसे लुभाती है


 


ध्यान रहता है मेरा जो उसमें


मुझसे हर चीज़ टूट जाती है


 


लूट लेती है दिल अदा उसकी 


जिस अदा से मुझे मनाती है


 


चाट लेता हूँ उंगलियाँ अक्सर


इतनी उम्दा वो डिश बनाती है 


 


तीस सालों में भी नहीं बदली 


आज भी वैसे ही लजाती है


 


सादगी में भी उसका क्या कहना


एक बिंदिया ही बस लगाती है


 


ज़िद की पक्की है इस कदर *साग़र* 


बस यही बात इक रुलाती है 


 


 


🖋️विनय साग़र जायसवाल


6/8/2020


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