विवेक दूबे निश्चल

अश्क़ भरे आंखों में बहाये न गये ।


रूठ कर आज अपने मनाये न गये ।


 


कह गये बात तल्ख़ लहज़े में वो ,


नर्म अल्फ़ाज़ जुवां पे सजाये न गये ।


 


 उठाते रहे हर नाज़ बड़े सलीक़े से ,


अहसास फ़र्ज़ कभी दिलाये न गये ।


 


हो गये गैर अपने गैर की ख़ातिर ,


अपने कभी मग़र भुलाये न गये ।


 


 सह गये हर चोट बड़े अदब से हम ,


ज़ख्म निश्चल कभी दिखाये न गये ।


     विवेक दूबे निश्चल


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