अमित दवे

सरल सहज वह जीवन जीता,


हर्ष क्षोभ में न विचलित होता,


नव ही नव नित करता जाता,


गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।


 


नित अनगढ़ माटी गढ़ता जाता,


तानाबाना वह सपनों का बुनता,


पर निज की नहीं गणना करता,


हाँ.गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।।


 


रीति नीति का वह पाठ पढ़ाता,


सहज ही जीवन में साँसें भरता,


पथ जगत् में नित वही बतलाता,


सच!गुरु शिष्य का भाग्य विधाता।


 


©अमित दवे,खड़गदा


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