दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

बिखर गये हैं बन निर्जन से


शिक्षा के सपनों के हीरे-मोती


सबने अब ये ठान लिया है


ढूंढ रहे शिक्षा में जीवन ज्योति।


 


जीवन का सपना पूरा होता है


शिक्षा को जीवन में अपनाते हो


प्रेम तुम्हारा सफल रहा है


यदि शिक्षा में घुल मिल जाते हो।


 


जीवन के तम को धो डाला


शिक्षा के ही हिमजल से


मन के आंगन में दीप


जल रहे तारे झिलमिल से।


 


शिक्षा की पुष्प वाटिका में


यदि भ्रमर बन मंडराते हो


जीवन - उपवन खिल जाता है


व्याकुल अनुराग उर में बसाते हो।



     -दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल


       महराजगंज उत्तर प्रदेश।


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