डॉ निर्मला शर्मा

विरह वेदना 


 


यमुना तट पर बैठी राधा


 नेह का दीप जलाए 


कहां गए ओ किशन कन्हैया 


मन की बात ही जलती जाए 


नैनन नीर बहे सरिता सम 


विकल हिया बह जाए 


कैसे मन के तट को बांधूँ


 बांध ना बांधा जाए 


गोधूलि बेला में निस दिन


 द्वार निहारु जाए 


आते होंगे बंसी बजैया 


मन ये कहता जाए 


कुंज गलिन में यमुना तट पर 


बाट निहारु जाए 


कबहूँ मिलोगे मनमोहन अब 


जीवन बीता जाए 


तन गोकुल में मन मथुरा में


विरह से मन भर जाय


किसी विधि जिऊँ


 अब तुम ही बताओ 


क्या मैं करूं उपाय ।


 


डॉ निर्मला शर्मा 


दौसा राजस्थान


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