सत्यप्रकाश पाण्डेय

हिय वातायन में ........


 


हिय वातायन से झांकती नजरें


नयनाभिराम छवि तेरी


अवर्चनीय तोहफा हो विधु का


तुमही चाहत प्रिय मेरी


 


रजनी में देखता नीलगगन को


हर नक्षत्र में आभा तेरी


आकाश मंदाकिनी की धारा में


दिखे तिरती आशा मेरी


 


कश्मकश सी रहती है दिल में


समझेंगी भावनाएं मेरी


या फिर बनी रहेंगी दूरी यूं ही


पूर्ण होंगी कामनाएं मेरी


 


दिल के तार जोड़ते रहे दिल से


आरोपित अभिलाषा मेरी


सुरभि चाही थी जिस सुमन से


क्या मुराद पूर्ण होगी मेरी।


 


सत्यप्रकाश पाण्डेय


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