सुनील कुमार गुप्ता

गुरु शिष्य का भाग्य विधाता


जाने जग मे सब साथी,


गुरु बिन ज्ञान नहीं-


जीवन मे कही सम्मान नहीं।


गुरु ही शिष्य का भाग्य विधाता,


इसमें कही कोई -


साथी अभिमान नहीं।


माँ जीवन की प्रथम गुरु,


देती जीवन संस्कार-


फिर भी मिलता उसे सम्मान नहीं।


गुरु चरणो में बैठ जो साथी,


करे सम्मान पाता ज्ञान -


बनता जीवन में महान वहीं।


गुरु का स्थान प्रभु से भी ऊँचा,


देता वही प्रभु मिलन की-


साथी दिशा सही।


भटकते कदमो को दे दिशा,


दे सच्चा ज्ञान-


सद् गुरु की पहचान यही।


गुरु ही शिष्य का भाग्य विधाता,


सत्य है ये तो-


इसमे कही दो मत नहीं।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...