सुनील कुमार गुप्ता

राह नई दिखाने लगे


भूल चुका यहाँ मन जिनको,


क्यों-याद वही आने लगे?


सपनो में छा कर संग वो,


नींद उनकी चुराने लगे।।


समझा न साथी कभी यहाँ,


क्यों-पल-पल तड़पाने लगे?


मिल कर पल भर को जगत में,


दुनियाँ नई बसाने लगे।।


देख सतरंगी सपने फिर,


क्यों-कदम डगमगाने लगे?


चाह जो पल भर को साथी,


राह नई दिखाने लगे।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


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