सुनीता असीम

हराकर दिल मैं जितवाया गया हूँ।


मुहब्बत से भी बहलाया गया हूँ।


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मुझे दिखला झलक गायब हुए वो।


दिवानावार तरसाया गयाहूँ।


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जमाना जागता सोता रहा मैं।


पकड़कर हाथ उठवाया गया हूँ।


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किया था जुर्म मैंने प्यार करके।


लगा आरोप फसवाया गया हूँ।


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अगन बन सूखती धरती लगी जब।


 बनाकर मेघ बरसाया गया हूँ। 


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सुनीता असीम


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