सुनीता असीम

दुनिया में रहा जिसका कोई न ठिकाना है।


बेशक है खुदा उसका कहता ये जमाना है।


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मगरूर हुआ दुश्मन खतरे में वतन है अब।


अपना तो हमें दम भी दुश्मन को दिखाना है।


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आँखें भी दिखाता है गैरत न बची इसमें।


मैदान में आके इसके छक्के छुड़ाना है।


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ख्वाहिश नहीं पूरी जिसकी कोई है होती।


भगवान को देता रहता शख्स वो ताना है।


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क्यूं भूल ये है जाता इंसान यहां आकर।


आया है यहाँ पर जो इक दिन उसे जाना है।


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सुनीता असीम


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