डा. नीलम

भावों का प्रवाह......


 


कहने को बहुत कुछ है मगर


शब्द-शब्द भीग रहा


बाहर आसमां ,भीतर-भीतर


मनाकाश बरस रहा


 


सामने हैं कागज-कलम


हाथ बेदम हुआ


लेने से आकार अक्षर-अक्षर लाचार रहा


 


बेरहमी से कुचला था जिस्म


जानते हैं सब जन 


सच बोलने से आदमी आज


बेजार रहा


 


बहुत जतन किये सच उगलवाने के


सच सामने न आया हर जतन बेकार रहा


 


बयां करती रहीं *नील* हादसे को भीगी आँखे


आहों ने आकार ले लिया, लब मगर खामोश रहा।


 


       डा. नीलम


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