डॉ. हरि नाथ मिश्र

*ग्यारहवाँ अध्याय*(श्रीकृष्णचरितबखान)-4


बाबा नंद सकल ब्रजबासी।


होइ इकत्रित सबहिं उलासी।।


आपसु मा मिलि करैं बिचारा।


भवा रहा जे अत्याचारा।।


     ब्रज के महाबनय के अंदर।


     इक-इक तहँ उत्पात भयंकर।।


गोपी एक रहा उपनंदा।


जरठ-अनुभवी मीतइ नंदा।।


    कह बलराम-किसुन सभ लइका।


    खेलैं-कूदें नहिं डरि-डरि का ।।


यहि कारन बन तजि सभ चलऊ।


कउनउ अउर जगह सभ रहऊ।।


      सुधि सभ करउ पूतना-करनी।


       उलटि गयी लढ़ीया यहि धरनी।।


अवा बवंडर धारी दइता।


उड़ा गगन मा किसुनहिं सहिता।।


     पुनि यमलार्जुन तरु महँ फँसई।


     सिसू किसुन आपुनो कन्हई।।


बड़-बड़ पून्य अहहि कुल-देवा।


किसुनहिं बचा असीषहिं लेवा।।


     करउ न देर चलउ बृंदाबन।


      बछरू-गाइ समेतहिं बन-ठन।।


हरा-भरा बन बृंदाबनयी।


पर्बत-घास-बनस्पति उँहयी।।


      बछरू-गाइ सकल पसु हमरे।


      चरि-चरि घास उछरिहैं सगरे।।


                डॉ0हरि नाथ मिश्र


                 9919446372


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