सुनील कुमार गुप्ता

कविता:-


 सपने ले नव-आकार


दु:ख की अनुभूति से ही यहाँ,


होता सुख का आभास।


सुख ही सुख होता जीवन में,


न होता मन में विश्वास।।


बढ़ता रहे विश्वास मन का,


ऐसी हो जग में आस।


बनी रहे आस्था प्रभु में,


टूटे नहीं ये विश्वास।।


हरे काम- क्रोध-मद्-लोभ,


जीवन को दे आधार।


सद्कर्मो संग जीवन में फिर,


सपने ले नव-आकार।।


 


 सुनील कुमार गुप्ता


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