विनय साग़र जायसवाल

मैं इस बात को भूल पाता नहीं


तू वादा कभी भी निभाता नहीं


 


मुहब्बत का इज़हार मैं कर सकूँ


वो नज़दीक इतना भी आता नहीं


 


निगाहों पे तेरा है ऐसा असर 


मुझे और कुछ अब लुभाता नहीं


 


नहीं रूठता वो यही सोचकर


मैं रूठे हुए को मनाता नहीं


 


किसी ग़म से लगता वो दो चार है 


मुझे देखकर मुस्कुराता नहीं


 


ख़फ़ा मुझसे है हाक़िम-ए-वक़्त यूँ


मैं सर उसके आगे झुकाता नहीं


 


गये तन्हा मुझको सभी छोड़कर


मगर तेरा ग़म है कि जाता नहीं


 


ये साग़र मेरी खासियत है कि मैं


धुऐं में सभी कुछ उड़ाता नहीं


 


विनय साग़र जायसवाल


कोई टिप्पणी नहीं:

Featured Post

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... दयानन्द त्रिपाठी व्याकुल

गीत- दिन से क्या घबराना दिन तो आते जाते हैं....... चुप्पी  के   दिन खुशियों के दिन भीगे सपनों की बूंदों के दिन, आते जाते हैं, दि...