डॉ0 हरिनाथ मिश्र

*पंचम चरण*(श्रीरामचरितबखान)-18


जामवंत कह नाथ दयालू।


जापर हों रघुनाथ कृपालू।।


     तापर कृपा सभें जन करहीं।


     सुर-नर-मुनि सभ प्रमुदित रहहीं।।


भयो काजु जे रहा असंभव।


बिनु प्रभु-कृपा नहीं कछु संभव।।


     पाइ कृपा प्रभु कै हनुमाना।


      लाए सुधि सीता जग जाना।


बिजयी-बिनयी सभ गुन-आगर।


जनम सुफल कीन्ह कपि-नागर।।


     तुरत नाथ हनुमंत बुलाए।


     हरषित हिय तिन्ह गरे लगाए।।


पूछे कहहु तात केहि भाँती।


रहहिं सीय तहँ बासर-राती।।


    कस सिय करहिं सुरच्छा प्राना।


     होइ अभीत कहहु हनुमाना।।


प्रभु तव नाम सीय रखवारा।


तुम्हरो ध्यान कपाट-पहारा।।


      निज लोचन लगाइ चरनन्ह महँ।


      करहिं सुरच्छा निज सिय रहि तहँ।।


दोहा-चलत तुरत चूड़ामनी, दीन्ह मोंहि सिय मातु।


         कहि के तुमहिं सनेस कछु,लोचन-जल उतिरातु।।


                        डॉ0 हरि नाथ मिश्र


                          9919446372


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