डॉ० रामबली मिश्र

*गुनगुनी धूप*


 


गुनगुनी धूप मन को लुभाने लगीं।


अब प्रिया की मधुर याद आने लगी।


है सुहाना ये मौसम बहुत ही रसिक।


रस की वर्षा हृदय में रसाने लगी।


धूप ठंडक की कितनी सहज मस्त है।


अब मधुर कामना मन में आने लगी।


बिन प्रिया मन उदासी से भरपूर है।


अग्नि विछुड़न की मन को जलाने लगी।


 


गुनगुनी धूप सुखदा भले ही लगे।


पर विरह वेदना अब सताने लगी।


सर्द की धूप चाहे भले हो सुखद।


भावना आशियाना हटाने लगी।


 


रचनाकार:डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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