डॉ० रामबली मिश्र

*जो भी लिखता..*


 


कुछ भी लिखता तुम लिख जाते।


हर अक्षर में तुम दिख जाते।।


 


सोच-समझकर शव्द बनाता।


सारे शव्द तुम्हीं बन जाते।।


 


पतझड़ के पत्तों पर लिखता।


तुम किसलय बनकर उग आते।


वाक्य बनाता रच-रचकर मैं।


सब वाक्यों में तुम आ जाते।


 


लिखने को जब कलम उठाता।


स्याही बनकर तुम आ जाते।।


 


पृष्ठ पलटता जब लिखने को।


हर पन्ने पर तुम छा जाते।।


 


महक रहे हो मृदुल भाव बन।


अनचाहे कविता बन जाते।।


 


ऐसा क्यों है समझ न पाता।


बिन जाने तुम प्रिय बन जाते।।


 


डॉ० रामबली मिश्र हरिहरपुरी


9838453801


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