राजेंद्र रायपुरी

🪔🪔 दीप-दिवाली 🪔🪔


 


आवन को हैं राम दुलारे।


नर - नारी उत्सुक हैं सारे।


सजी अयोध्या दुल्हन जैसी।


दीप जले हैं द्वारे - द्वारे।


 


कार्तिक मास अमावस को ही,


वन से लौटे थे रघुराई।


सहित जानकी और अनुज निज़,


कहते जिनको लछिमन भाई।


 


स्वागत में तब उनके घर- घर अवधपुरी में दीप जले थे।


बाॅ॑ट मिठाई अवध निवासी,


 इक दूजे से मिले गले। थे‌।


 


कहें इसे ही दीप - दिवाली।


 खुशियाॅ॑ मन में भरने वाली।


रौशन हो जाती है इस दिन, 


रात अमावस काली - काली।


 


आओ हम भी दीप जलाऍ॑।


 खुशी - खुशी त्यौहार मनाऍ॑।


बाॅ॑ट मिठाई इक - दूजे को, 


परंपरा जो उसे निभाऍ॑।


 


           ।। राजेंद्र रायपुरी।।


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